क्या है मोरंड गंजाल सिंचाई परियोजना; कौन कौन से अवरोध है परियोजना की राह में आगे पढ़िए….
हरदा। स्थानीय विधायक डॉ. रामकिशोर दोगने द्वारा प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र प्रेषित कर गंजाल मोरंड डेम एवं मुहाल माईनर का शीघ्र निर्माण कार्य आरंभ कराये जाने का अनुरोध किया है।
हरदा विधायक डॉ. दोगने द्वारा मुख्यमंत्री को प्रेषित किए पत्र में लेख किया गया है कि हरदा जिला अंतर्गत गंजाल मोरंड डेम एवं मुहाल माइनर निर्माण कार्य स्वीकृत किया गया था। जिसका वर्ष 2020 में टेंडर हो चुका है व वर्ष 2023 में गंजाल मोरंड डेम निर्माण कार्य का भूमि पूजन भी किया जा चुका है परन्तु कार्य शुरू नहीं हुआ है, वही मुहाल माईनर का कार्य शुरू हो गया था परन्तु भू-अर्जन के कारण उक्त कार्य रुका हुआ है।
विधायक दोगने ने उल्लेख करते हुए कहा की यह खेद का विषय है। उक्त दोनो निमार्ण कार्य पूर्ण होने में जितनी देरी होगी, उतनी ही ज्यादा प्रोजेक्ट की लागत में इजाफा होगा, जिसका आर्थिक बोझ सरकार को वहन करना पडे़गा। अतः अनुरोध है कि गंजाल मोरंड डेम एवं मुहाल माइनर निर्माण कार्य अतिशीघ्र शुरू कराया जावे।
क्या है मोरंड गंजाल सिंचाई परियोजना; जानिए एक नजर में

यह परियोजना हरदा, नर्मदापुरम व खंडवा जिले के लिए है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण और जल संसाधन विभाग ने संयुक्त रुप से मोरंड गंजाल सिंचाई परियोजना तैयार की है। 2813 करोड़ रुपए की इस योजना से तीन जिलों में सिंचाई का रकबा बढ़ जाएगा। यह परियोजना 3 चरण में पूरी होना प्रस्तावित है। इसकी प्रारंभिक लागत 2813 करोड़ रुपए थी। प्रारंभिक सर्वे में तीनों जिले के 211 गांवों की 52205 हैक्टेयर जमीन सिंचित होना बताया गया। पहले चरण में मोरंड बांध दूसरे में दोनों नहरें पाइप केनाल के रूप में बनाने और आखिरी में पूरे कमांड क्षेत्र में भूमिगत नहर प्रणाली से सिंचाई सुविधा प्रस्तावित की गई। इसे मप्र की 29 बड़ी परियोजनाओं में शामिल बताया गया। परियोजना में सिवनीमालवा के मोरघाट के पास मोरंड नदी तथा हरदा जिले के ग्राम जवरधा के पास गंजाल नदी पर बांध बनेगा।
क्या है अवरोध परियोजना की राह में
प्रस्तावित बांध से प्रभावित होने वाले गांव के आदिवासी इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। इतना ही नहीं, ग्रामीणों ने पूर्व में आंदोलन भी किया था जिसके बाद से परियोजना का काम लगभग ठप्प पडा हुआ है।
इस परियोजना को लेकर प्रभावित क्षेत्रों के ग्रामीणों का कहना है कि शासन द्वारा उनके विस्थापन की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। ग्राम सभा भी इसकी अनुमति नहीं दे रही है। जिस जमीन के सहारे वे शुरू से परिवार पाल रहे हैं यदि वह चली गई तो उनका जीवन यापन कैसे होगा। दर्जनों प्रभावित परिवारों ने पूर्व में कलेक्टर को आवेदन भी दिया था। उल्लेखनीय है की प्रस्तावित मोरंड गंजाल परियोजना से प्रभावित होने वाले सभी परिवार आदिवासी समुदाय के हैं। इस परियोजना के अमल में आने के बाद उनकी खेती व घर की जमीन और जीवन यापन के लिए बचे जंगल नष्ट हो जाएंगे। ऐसे में उनका जीवन-यापन मुश्किल में पद सकता है और इस क्षेत्र से आदिवासी समाज का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। इसी आशंका के चलते इस क्षेत्र के आदिवासियों ने बार बार दोहराया है की वे अपने जल, जंगल जमीन को इस तरह डूबने नहीं देंगे। प्रभावितों के इस विरोध को जिंदगी बचाओ अभियान और अन्य आदिवासी संगठनों ने भी अपना समर्थन दिया हैं।