Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि का आठवां दिन, देवी महागौरी का स्वरूप, पूजन विधि, मंत्र, भोग 

चैत्र नवरात्रि में दुर्गा पूजा के दौरान अष्टमी पूजन का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन मां दुर्गा के महागौरी (Maa Mahagauri) रूप का पूजन किया जाता है। सुंदर, अति गौर वर्ण होने के कारण इन्हें महागौरी कहा जाता है। देवीभगवत् पुराण में बताया गया है कि आठवें दिन की पूजा मां दुर्गा के मूल भाव को दर्शाता है और महादेव के साथ उनकी अर्धांगिनी के रूप में महागौरी ही सदैव विराजमान रहती हैं, इसलिए माता का एक नाम शिवा भी है। महागौरी की पूजा करने से सोमचक्र जागृत हो जाता है और इनकी कृपा मात्र से हर असंभव कार्य पूरा हो जाता है। आइए जानते हैं मां महागौरी का स्वरूप, भोग, आरती

देवीभागवत पुराण में बताया गया है कि देवी पार्वती का जन्म राजा हिमालय के यहां हुआ था। माता को मात्र 8 वर्ष की आयु में ही अपने पूर्वजन्म की घटनाओं का आभास हो गया था। मात्र 8 वर्ष की आयु में ही माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या भी शुरू कर दी थी। इसलिए नवरात्रि की अष्टमी तिथि को महागौरी की पूजा की जाती है। अपनी तपस्या के दौरान माता ने केवल वायु पीकर तप करना शुरू कर दिया था। तपस्या से माता पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ था इसलिए माता पार्वती का नाम महागौरी पड़ा।

तपस्या से माता पार्वती का शरीर काला पड़ गया था। तब भगवान शिव ने तपस्या से प्रसन्न होकर महागौरी से गंगा स्नान के लिए कहा। जिस समय माता पार्वती ने गंगा में डूबकी लगाई तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुईं, जो कौशिकी के नाम से जानी गईं और एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ, वह महागौरी कहलाईं। महागौरी अपने भक्तों की हर मुरादों को पूरा करती हैं और उनकी राह में आ रही अड़चनों को दूर करती हैं। मां की कृपा से कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती।

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मां महागौरी का स्वरूप

देवीभागवत पुराण में बताया गया है कि मां महागौरी के सभी वस्त्र और आभूषण सफेद रंग के हैं इसलिए माता को श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है। अपनी तपस्या से इन्होंने गौर वर्ण प्राप्त किया था। उत्पत्ति के समय यह आठ वर्ष की थीं, इसलिए इन्हें नवरात्र के आठवें दिन पूजा जाता है। अपने भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप हैं। यह धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। सांसारिक रूप में इनका स्वरूप बहुत ही उज्जवल कोमल, श्वेतवर्ण और श्वेत वस्त्रधारी है। देवी एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में डमरू लिए हुए हैं। वहीं एक हाथ अभय और एक हाथ वरमुद्रा में है। देवी महागौरी को गायन-संगीत प्रिय है और यह सफेद वृषभ यानि बैल पर सवार हैं।

मां महागौरी पूजन विधि

नवरात्रि की अष्टमी तिथि की पूजा भी अन्य तिथियों की तरह ही की जाती है। जिस तरह सप्तमी तिथि को माता की शास्त्रीय विधि से पूजा की गई, उसी तरह अष्टमी तिथि की भी पूजा होगी। इस दिन देसी घी का दीपक जलाते हुए मां के कल्याणकारी मंत्र ओम देवी महागौर्यै नम: मंत्र का जप करें और माता को लाल चुनरी अर्पित करें। इसके बाद रोली, अक्षत, सफेद फूल, नारियल की मिठाई आदि पूजा की चीजें अर्पित करें। अगर आप अग्यारी कर रहे हैं तो रोज की चरह लौंग, बताशे, इलायची, हवन सामग्री आदि चीजें अर्पित करें। इसके बाद कपूर या दीपक से पूरे परिवार के साथ महागौरी की आरती करें और माता के जयाकरे लगाएं। इसके बाद दुर्गा मंत्र, दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करें और शाम के समय में भी पूजा करें।

  • इस दिन कन्या पूजन और उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराने का अत्यंत महत्व है।
  • सौभाग्य प्राप्‍ति और सुहाग की मंगल कामना लेकर मां को चुनरी भेंट करने का भी इस दिन विशेष महत्व है।

नवरात्रि के आठवें दिन, शक्ति स्वरूपा महागौरी का दिन होता है। मां की आराधना हेतु सर्वप्रथम देवी महागौरी का ध्यान करें।

हाथ जोड़कर इस मंत्र का उच्चारण करें-

‘सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। 

सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥’

इस मंत्र के उच्चारण के पश्चात महागौरी देवी के विशेष मंत्रों का जाप करें और मां का ध्यान कर उनसे सुख, सौभाग्य हेतु प्रार्थना करें।

देवी महागौरी के मंत्र-Maa Mahagauri Mantra

 ॐ देवी महागौर्यै नमः॥

 श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

 या देवी सर्वभू‍तेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

माता महागौरी का विशेष भोग

हिंदू धर्म के मुताबिक, नवरात्रि के आठवे दिन मां महागौरी को भोग में नारियल और चीनी की मिठाई बनाकर चढाने से माता प्रसन्न होती हैं और हर तरह की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. घर धन-संपदा से भर देती हैं. आप नारियल की बर्फी या लड्डू बनाकर मां को अर्पित कर सकते हैं। अगर कन्या पूजन कर रहे हैं तो मां को हलवा-पूड़ी, सब्जी, काले चने, खीर का भी भोग लगाएं।

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