बैतूल। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए गिद्धों की अहम भूमिका रही है, लेकिन अब गिद्ध पक्षी विलुप्त होते जा रहे है। अंधाधूंध रसायानों के प्रयोग व प्राकृति संसाधनों का दुरूपयोग के कारण गिद्धों के विलुप्त होना बताया जा रहा है। हाल ही में वन विभाग की तरफ से गिद्धों की गणना की गई। गणना में बैतूल में एक भी गिद्ध पक्षी नहीं मिला है। वन विभाग दक्षिण, उत्तर और पश्चिम तीनों वन मंडल में गिद्धों की गणना हुई, लेकिन कहीं पर भी गिद्ध नहीं मिले है। गिद्ध पक्षी नहीं मिलने से ऐसा लग रहा है कि अब बैतूल से गिद्ध पूरी तरह से विलुप्त हो गए है। वन विभाग ने 16 फरवरी से 18 फरवरी तक गिद्धों की गणना की गई। बैतूल सतपुड़ा की वादियों में बसा है और यहां घने जंगल भी मौजूद है, इसके बावजूद भी गिद्ध पक्षी विलुप्त हो गए है। वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक अलग-अलग वन परिक्षेत्र में कुल 600 वनकर्मियों ने गिद्धों की तलाश की। वनकर्मी अलग-अलग बीट क्षेत्र में पहुंचे, लेकिन उन्हें कहीं भी गिद्ध नहीं मिले।
पर्यावरण संरक्षण के लिए गिद्ध महत्वपूर्ण
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि गिद्ध संरक्षण के लिए सहायक होते है। आज कुछ वर्ष पहले गिद्ध बड़ी संख्या में दिखाई देते थे। गिद्ध धरती पर मृत पशुओं और अन्य जानवरों को खाकर पर्यावरण की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण योगदान देते थे। जब भी कोई जानवर मृत होता गिद्ध पहुंचकर मृत जानवर को खाते थे, लेकिन कुछ वर्षो से गिद्ध विलुप्त हो गए है। कुछ वर्ष पहले इक्का-दुक्का गिद्ध बैतूल में मिले थे, लेकिन अब लगभग गिद्धों का सफाया हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार पशुओं में बुखार होने पर लगाए जाने वाला टीका डाईक्लोफिनैक सोडियम है, जिसका असर गिद्धों पर दिखाई दिया है।
2016 में मिले थे दो गिद्ध
प्राप्त जानकारी के मुताबिक बैतूल के दक्षिण वन मंडल क्षेत्र में कुछ वर्ष पहले दो गिद्ध मिले थे, लेकिन इस बार एक भी गिद्ध नहीं मिला है। डीएफओ विजय नाथम टीआर ने बताया कि इस बार हाल ही में हुई गणना में दक्षिण वन मंडल क्षेत्र में एक भी गिद्ध दिखाई नहीं दिया है। वनकर्मियों ने गिद्धों की तलाश में जंगल की खाक छान ली। डीएफओ के मुताबिक दक्षिण वन मंडल क्षेत्र में 2016 में दो गिद्ध पाए गए थे, लेकिन यह दोनों गिद्ध विलुप्त हो गए है।