हरदा : शेषावतार आद्य गुरू श्री श्री 1008 रामानुजाचार्य स्वामी का 1007 वाँ प्राकट्योत्सव मनाया गया

हरदा।  रविवार को स्थानीय महाराणा प्रताप कॉलोनी स्थित श्री रामानुज कोट मंदिर में शेषावतार आद्य गुरू श्री श्री 1008 रामानुजाचार्य स्वामी का 1007 वाँ प्राकट्योत्सव बडी धूमधाम से मनाया गया , इस अवसर पर बडी संख्या में रामानुज संप्रदाय और अन्य भागवत जन  श्री रामानुज स्वामी जी प्राकट्योत्सव में शामिल हुए।

इस अवसर पर प्रात:काल में श्री रामानुज स्वामी जी का अभिषेक, पूजन,अर्चना, स्तुति और आरती के पश्चात गोष्ठी प्रसादी का सिलसिला दोपहर तक चलता रहा।

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श्री रामानुज कोट मंदिर के प्रमुख और व्यवस्थापक पं. वेंकटेश स्वामी ने बताया की रामानुजाचार्य के दर्शन में सत्ता या परमसत् के सम्बन्ध में तीन स्तर माने गये हैं – ब्रह्म अर्थात् ईश्वर, चित् अर्थात् आत्म तत्व और अचित् अर्थात् प्रकृति तत्व। वस्तुतः ये चित् अर्थात् आत्म तत्त्व तथा अचित् अर्थात् प्रकृति तत्त्व ब्रह्म या ईश्वर से पृथक नहीं है बल्कि ये विशिष्ट रूप से ब्रह्म के ही दो स्वरूप हैं एवं ब्रह्म या ईश्वर पर ही आधारित हैं। वस्तुतः यही रामनुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत का सिद्धान्त है।

रामानुज के अनुसार भक्ति का अर्थ पूजा-पाठ या कीर्तन-भजन नहीं बल्कि ध्यान करना या ईश्वर की प्रार्थना करना है। इसी गहन भक्ति के तहत संत रामानुजाचार्य को मां सरस्वती के दर्शन भी प्राप्त हुए थे। सामाजिक परिप्रेक्ष्य से रामानुजाचार्य ने भक्ति को जाति एवं वर्ग से पृथक तथा सभी के लिये सम्भव माना है। इसके अलावा रामानुजाचार्य भक्ति को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत कर उसके लिए दार्शनिक आधार भी प्रदान किया कि जीव ब्रह्म में पूर्णता विलय नहीं होता है बल्कि भक्ति के द्वारा ब्रह्म को प्राप्त करके जीवन मृत्य के बंधन से छूटना यही मोक्ष है।

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