इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक.. सुप्रीम कोर्ट ने फंडिंग पर सरकार को दिया बड़ा झटका
शिशिर गार्गव।
इलेक्टोरल बॉन्ड मामले पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बात कही है। उसने कहा कि स्कीम के तहत दान से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करनी होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना असंवैधानिक है, इसलिए इस पर रोक लगाई जा रही है। इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुनवाई पिछले साल 31 अक्टूबर को शुरू हुई थी। सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।
देश की सर्वोच्च अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले पांच सालों के चंदे का हिसाब-किताब भी मांग लिया है। अब निर्वाचन आयोग को बताना होगा कि पिछले पांच साल में किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से पूरी जानकारी जुटाकर इसे अपनी वेबसाइट पर साझा करे। शीर्ष अदालत के इस फैसले को उद्योग जगत के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है।
इस योजना को जनवरी 2018 में घोषित होने के तुरंत बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), कॉमन कॉज और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) सहित कई पार्टियों द्वारा चुनौती दी गई थी। कॉमन कॉज और एडीआर का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया था कि नागरिकों को वोट मांगने वाली पार्टियों और उम्मीदवारों के बारे में जानकारी पाने का अधिकार है। हालांकि कंपनियों के वित्तीय विवरण कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं, जो सैद्धांतिक रूप से किसी को दान के स्रोत को जानने की अनुमति दे सकते हैं। भूषण का कहना था कि भारत में लगभग 23 लाख पंजीकृत कंपनियां हैं। भूषण ने तर्क दिया था कि इस पद्धति का उपयोग करके यह पता लगाना कि प्रत्येक कंपनी ने कितना दान दिया है, एक सामान्य नागरिक के लिए संभव नहीं होगा। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने योजना में और अधिक कथित कमियों पर प्रकाश डाला। उनका कहना था कि इस योजना में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके लिए दान को चुनाव प्रक्रिया से जोड़ा जाना आवश्यक हो। उनका कहना था कि एसबीआई के स्वयं के एफएक्यू अनुभाग में कहा गया है कि बांड राशि को किसी भी समय और किसी अन्य उद्देश्य के लिए भुनाया जा सकता है।
अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द नहीं कर सकती सरकार.. कपिल सिब्बल की दो टूक

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इसे रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ये संविधान की ओर से दिए गए सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के राइट्स का उल्लंघन करती है। सर्वोच्च अदालत के फैसले का कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने स्वागत किया है।
वहीं इस फैसले पर वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने बड़ा दावा किया है।‘इंडियन एक्सप्रेस ‘ को दिए गए एक साक्षत्कार में उन्होंने कहा कि सरकार एक अध्यादेश के साथ चुनावी बॉन्ड के फैसले को रद्द नहीं कर सकती। कोई भी कानून सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द नहीं कर सकता। कपिल सिब्बल ही चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से मुख्य वकील थे और अपना तर्क रख रहे थे। उन्होंने इस योजना को रद्द करने वाले फैसले से जुड़े अहम पहलुओं की जानकारी दी। वरिष्ठ वकील ने बताया कैसे उन्हें लगता है कि कैसे इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम एक बड़ा घोटाला है। उन्होंने कहा कि कोर्ट का ये फैसला ऐतिहासिक है। यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा को बहाल करने का प्रयास करता है, जो संविधान की मूल संरचना है। यह चुनाव प्रणाली में पारदर्शिता लाने की कोशिश करता है।
सरकार इस फैसले के खिलाफ कोई कदम उठाएगी ?
कपिल सिब्बल ने कहा कि वे ऐसा नहीं कर सकते। एक अध्यादेश किसी फैसले को रद्द नहीं कर सकता। कोई भी कानून किसी फैसले को रद्द नहीं कर सकता। वे नई फंडिंग व्यवस्था स्थापित करने के लिए अध्यादेश ला सकते हैं। लेकिन ये नहीं। जब उनसे पूछा गया कि क्या आपको लगता है सरकार ऐसा करेगी? सिब्बल ने कहा कि मुझे ऐसा नहीं लगता, हालांकि, इसका पता 13 मार्च तक ही लग सकेगा। तब तक आदर्श आचार संहिता लग जाएगी।
फैसले का महत्वपूर्ण पहलू क्या हैं ?
कपिल सिब्बल ने कहा कि पहली बात यह कि उन्होंने माना अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना का अधिकार लोकतंत्र के लिए मौलिक है। केएस पुट्टास्वामी और अन्य फैसलों पर भरोसा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक नागरिक को यह जानने का अधिकार है कि सत्ता में राजनीतिक दल को किसने कितना पैसा दिया। जब आप इन बॉन्ड्स के माध्यम से इस तरह पैसों का योगदान कर रहे हैं। जाहिर है, ये योगदान बहुत बड़ा है और इसमें बदले की भावना का एक तत्व हो सकता है। ऐसे में नागरिक को कम से कम उस जानकारी को प्राप्त करने का अधिकार है। एक तरह से, यह अनुच्छेद 19(1)(ए) में अंतर्निहित अवधारणा को आगे बढ़ा रहा है।
क्या विपक्षी दलों को इसे अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाना चाहिए ?
सिब्बल ने कहा कि इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जाना चाहिए। यह विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों का एक साथ मिलकर इस आधार पर चुनाव लड़ने का एक बड़ा अवसर है। कपिल सिब्बल ने कहा कि सच तो यह है कि इस फैसले से सबसे ज्यादा आंच बीजेपी को झेलनी पड़ेगी क्योंकि यह उनकी योजना है। यह विपक्ष की योजना नहीं है। वे इस योजना का उपयोग कर रहे थे, जिसे अब असंवैधानिक करार दिया गया है। जब उनसे पूछा गया कि कम से कम तीन क्षेत्रीय दलों – बीजेडी, डीएमके और टीएमसी को उनकी लगभग सारी फंडिंग चुनावी बांड के माध्यम से मिली है, योजना खत्म होने से उन पर भी भारी असर पड़ेगा। इस पर सिब्बल ने कहा कि क्यों नहीं? अगर बीजेपी को झटका लगा है तो दूसरों को भी झटका लगना चाहिए।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर SC के फैसले पर क्या बोले सिब्बल
कपिल सिब्बल ने बताया कि कैसे ये संशोधन राजनीतिक दल और दानदाताओं को इनकम टैक्स से बचाव कर रहे थे। राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से मिले पैसों का खुलासा करने से भी बचाया। सियासी पार्टियों को इसका खुलासा नहीं करने की अनुमति दी। तीसरा यह कि फंडिंग की कोई सीमा नहीं थी। पिछले कानून के तहत, यह पिछले तीन वर्षों के लिए किसी कंपनी के औसत मुनाफे का केवल 10 फीसदी था जिसे संबंधित व्यक्तियों या राजनीतिक दलों से संबंधित संस्थाओं के माध्यम से वित्तीय मदद किया जा सकता था। वह सीमा हटा दी गई थी जिससे आप जितना चाहें उतना योगदान कर सकें और घाटे में चल रही कंपनी भी चुनावी बांड योजना के तहत (फंडिंग) जारी रख सके। यहां तक कि जो कंपनियां भारत के बाहर स्थापित की गई थीं, उनकी भारतीय सहायक कंपनियां भी योगदान दे सकती थीं। इसलिए, उन सभी संशोधनों को अनुच्छेद 14 का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया गया।
ऐतिहासिक है सुप्रीम कोर्ट फैसला : सिब्बल

कपिल सिब्बल ने कहा कि ये पारदर्शिता को लेकर अहम दिन है, सूचना के अधिकार के लिए एक महान दिन है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए एक बड़ा दिन है। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट को यह भी एहसास हुआ कि इस इलेक्टोरल बांड योजना का चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। यह व्हाइट मनी है, इसका इस्तेमाल ब्लैक मनी पर अंकुश लगाने के लिए नहीं किया जा सकता है। यह केवल एक राजनीतिक दल के पास जाता है ताकि वे इस धन का उपयोग अपने किसी भी खर्च के लिए कर सकें, जिसमें सरकारें गिराना भी शामिल है।
इसलिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को SC ने किया रद्द

सिब्बल ने कहा कि याद रखें, वे अपने विधायकों को एक शहर से दूसरे शहर ले जाते थे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी सुरक्षा हो। ये पैसा कहां से आ रहा? यह इन बॉन्ड्स से आया है। और चुनावों के दौरान, अगर आपने विज्ञापनों के लिए सभी साइटों के लिए भुगतान किया है, अगर आपने हेलीकॉप्टर किराए पर लिए, सभी फ्लाइट किराए पर लिए, तो वह पैसा कहां से आया? इन बॉन्ड्स से। इसलिए, ये चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता था। वास्तव में, यह एक ऐसी योजना का प्रतिनिधित्व करता है जिसके माध्यम से दानकर्ता, बड़े उद्योगपति, सत्ता में राजनीतिक दल के साथ जुड़ सकते हैं।
कपिल सिब्बल ने इस दौरान कहा कि यह योजना अपने आप में एक घोटाला है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया है। अब यह घोटाला किस हद तक बदले की भावना के आधार पर किया गया, यह अगला कदम है, लेकिन इसकी जांच होनी जरूरी है। वे जांच नहीं करेंगे क्योंकि आप जानते हैं कि उनके निर्देशन में ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) हैं। हमें यह करना ही होगा।
विपक्षी दलों पर फैसले का कितना असर ?
जब सिब्बल से सवाल किया गया कि जब बीजेपी को चुनावी बांड के माध्यम से योगदान का बड़ा हिस्सा मिला है तो वहीं विपक्षी दलों को भी मिला होगा। उन पर भी इसका असर पड़ेगा? इस पर वरिष्ठ वकील ने कहा कि हां वो भी जरूर प्रभावित होंगे। हालांकि, इससे कम से कम वो जानकारी तो सामने आएगी। हमने यह भी स्पष्ट किया कि इनमें से कुछ बड़े उद्योगपति सभी राजनीतिक दलों को फंडिंग करते हैं।
क्या था मोदी सरकार का चुनावी बॉन्ड और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर क्यों लगाईं है रोक , जानें सबकुछ

शीर्ष अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया है। शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने इस संबंध में गुरुवार को फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने कहा स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड से जुड़ी पूरी जानकारी देनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि चुनावी बांड योजना, आयकर अधिनियम की धारा 139 द्वारा संशोधित धारा 29(1)(सी) और वित्त अधिनियम 2017 द्वारा संशोधित धारा 13(बी) का प्रावधान अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने आदेश दिया कि चुनावी बांड जारी करने वाला बैंक, यानी भारतीय स्टेट बैंक, चुनावी बांड प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण और प्राप्त सभी जानकारी जारी करेगा। उन्हें 6 मार्च तक भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को सौंप देगा। ईसीआई इसे 13 मार्च तक आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा। साथ ही राजनीतिक दल इसके बाद खरीददारों के खाते में चुनावी बांड की राशि वापस कर देंगे। जानते हैं आखिर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मायने क्या हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सरकार पर क्या असर पड़ेगा।
क्या है ? – इलेक्टोरल बॉन्ड

चुनावी बांड ब्याज मुक्त धारक बांड या मनी इंस्ट्रूमेंट था जिन्हें भारत में कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अधिकृत शाखाओं से खरीदा जा सकता था। ये बांड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख, और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में बेचे जाते थे।किसी राजनीतिक दल को दान देने के लिए उन्हें केवाईसी-अनुपालक खाते के माध्यम से खरीदा जा सकता था। राजनीतिक दलों को इन्हें एक निर्धारित समय के भीतर भुनाना होता था। दानकर्ता का नाम और अन्य जानकारी दस्तावेज पर दर्ज नहीं की जाती है और इस प्रकार चुनावी बांड को गुमनाम कहा जाता है। किसी व्यक्ति या कंपनी की तरफ से खरीदे जाने वाले चुनावी बांड की संख्या पर कोई सीमा नहीं थी। सरकार ने 2016 और 2017 के वित्त अधिनियम के माध्यम से चुनावी बांड योजना शुरू करने के लिए चार अधिनियमों में संशोधन किया था। ये संशोधन अधिनियम लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम , 1951, (आरपीए), कंपनी अधिनियम, 2013, आयकर अधिनियम, 1961, और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम, 2010 (एफसीआरए), 2016 और 2017 के वित्त अधिनियमों के माध्यम से थे। 2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को वित्त विधेयक के रूप में सदन में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की अधिसूचना जारी की गई थी।
कौन खरीद सकता है इलेक्टोरल बॉन्ड
चुनावी बॉन्ड योजना दानदाताओं को भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से इसे खरीदने के बाद गुमनाम रूप से किसी राजनीतिक दल को पैसे भेजने की अनुमति देता है। कौन खरीद सकता है इलेक्टोरेल बॉन्ड और किसे दे सकता है? कोई भी भारतीय नागरिक, कंपनी या संस्थान इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है। इसके लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की तय ब्रांच से बॉन्ड खरीदा जाता है। जब भी बॉन्ड जारी होने की घोषणा होती है तो उसे कोई भी एक हजार से लेकर एक करोड़ का बॉन्ड खरीद सकता है। बैंक से बॉन्ड खरीदने के बाद चंदा देने वाला जिस पार्टी को चाहे वह उसका नाम भरकर उसे बॉन्ड दे सकता है।
किसे मिलता है इलेक्टोरल बॉन्ड?
जो भी रजिस्टर्ड पार्टी है उसे यह बॉन्ड मिलता है, लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि उस पार्टी को पिछले आम चुनाव में कम-से-कम एक फीसदी या उससे ज्यादा वोट मिले हों। ऐसी ही रजिस्टर्ड पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा पाने का हकदार होगी। सरकार के मुताबिक, ‘इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा और चुनाव में चंदे के तौर पर दिए जाने वाली रकम का हिसाब-किताब रखा जा सकेगा। इससे चुनावी फंडिंग में सुधार होगा।’ केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि चुनावी बांड योजना पारदर्शी है।
क्या है चुनावी बॉन्ड स्कीम मामला ?
2017 में केंद्र सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को फाइनेंस बिल के जरिए संसद में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया। इसके जरिए राजनीतिक दलों को चंदा मिलता है। सुप्रीम कोर्ट में असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की ओर से इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती देते हुए कहा गया कि इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट की ओर से किया गया। उन्होंने इसे पार्टियों को दिया है। ये लोग इसके जरिए नीतिगत फैसले को प्रभावित कर सकते हैं।